Earth formed around 4.54 billion years ago, approximately one-third the age of the universe, by accretion from the solar nebula. While the Earth was in its earliest stage (Early Earth), a giant impact collision with a planet-sized body named Theia is thought to have formed the Moon.
पृथ्वी की उत्पत्ति और आयु के संबन्ध में समय-समय पर विभिन्न विद्वानों एवं संस्थाओं ने अपने विचार प्रस्तुत किए। प्रारंभ में धार्मिक विचारधाराओं का अधिक महत्व रहा। परन्तु 1749 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक कास्ते-द-बफन के द्वारा प्रथमतः तर्कपूर्ण परिकल्पना की प्रस्तुति के साथ इस संबन्ध में वैज्ञानिक पहल की शुरुआत हुई।
(Origin of The Earth Scientific Concepts)
वर्तमान समय में पृथ्वी एवं अन्य ग्रहों की उत्पत्ति के संबन्ध में दो प्रकार के वैज्ञानिक मत प्रचलित हैं:
- अद्वैतवादी संकल्पना (Monistic Concept)
- द्वैतवादी संकल्पना (Dualistic Concept)
1. अद्वैतवादी संकल्पना (Monistic Concept)
इस संकल्पना को ‘Parental Hypothesis’ भी कहा जाता है, इस मान्यता के अनुसार ग्रहों एवं पृथ्वी की उत्पत्ति एक ही वस्तु (तारे) से हुई है।
अद्वैतवादी संकल्पनाओं में कान्ट और लाप्लास की संकल्पनाएँ महत्वपूर्ण हैं:-
A. कांट की वायव्य राशि परिकल्पना (Kant’s Gaseous Hypothesis)
जर्मन दार्शनिक कांट ने 1755 ई. में न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियमों पर आधारित वायव्य राशि परिकल्पना का प्रतिपादन किया।
इसके अनुसार एक तप्त एवं गतिशील निहारिका (Nebula) से कई गोल छल्ले अलग हुए, जिनके शीतलन से सौरमंडल के विभिन्न ग्रहों का निर्माण हुआ।
पृथ्वी भी इन्हीं में से एक है। परंतु, इस सिद्धांत में कांट ने गणित के गलत नियमों का अनुप्रयोग किया, क्योंकि यह कोणीय संवेग के संरक्षण के नियम का अनुपालन नहीं करता है।
B. लाप्लास की निहारिका परिकल्पना (Nebular Hypothesis of Laplas)
फ्रांसीसी विद्वान लाप्लास ने 1796 ई. में कांट के सिद्धांत को संशोधित करते हुए बताया कि एक विशाल तप्त निहारिका से पहले एक ही छल्ला बाहर निकला जो कई छल्लों में विभाजित हो गया तथा ये छल्ले अपने पितृ छल्ले के चारों ओर एक दिशा में घूमने लगे।
बाद में इन्हीं के शीतलन से विभिन्न ग्रहों का निर्माण हुआ, जिनमें पृथ्वी भी शामिल है।
इस परिकल्पना के अनुसार सभी ग्रहों के उपग्रहों को अपने पितृ ग्रह की दिशा में घूमना चाहिए।
परन्तु, इस तथ्य के विपरीत शनि तथा बृहस्पति के उपग्रह अपने पितृ ग्रह के विपरीत दिशा में भ्रमण करते हैं।
2. द्वैतवादी संकल्पना (Dualistic Concept)
अद्वैतवादी संकल्पना के विपरीत इस विचाधारा के अनुसार ग्रहों की उत्पत्ति दो तारों के संयोग से मानी जाती है।
इसलिए इस संकल्पना को ‘Bi-Parental Hypothesis’ भी कहते हैं।
इसके अन्तर्गत चैम्बरलिन की ग्रहाणु परिकल्पना एवं जेम्स जीन्स की ज्वारीय संकल्पना महत्वपूर्ण हैं:-
A. चैम्बरलिन व मोल्टन की ग्रहाणु परिकल्पना (Planetsimal Hypothesis)
यह द्वैतवादी संकल्पना (Bi-Parental Concept) के अंतर्गत आने वाला सिद्धांत है, जिसका प्रतिपादन चैम्बरलिन और मोल्टन ने 1905 ई. में किया था।
इनके अनुसार ग्रहों का निर्माण तप्त गैसीय निहारिका से नहीं वरन् ठोस पिंड से हुआ है।
प्रारंभ में दो विशाल तारे थे-सूर्य एवं उसका साथी अन्य तारा। जब यह अन्य विशाल तारा सूर्य के पास पहुँचा तो उसकी आकर्षण शक्ति के कारण सूर्य के धरातल से असंख्य कण अलग हो गए ।
यही आपस में मिलकर पृथ्वी व अन्य ग्रहों के निर्माण का कारण बने।
इस सिद्धांत के द्वारा पृथ्वी की उत्पत्ति, संरचना, महासागर व महाद्वीप की उत्पत्ति, पर्वतों का निर्माण आदि की व्याख्या करने का भी प्रयास किया गया है।
B. जेम्स जीन्स (1919 ई.) व जेफरिज (1921 ई.) की ज्वारीय परिकल्पना (Tidal Hypothesis)
पृथ्वी की उत्पत्ति के सम्बंध में यह आधुनिक परिकल्पनाओं में से एक है, जिसे पर्याप्त समर्थन प्राप्त है । इसके अनुसार सौरमंडल का निर्माण सूर्य एवं एक अन्य तारे के संयोग से हुआ है ।
सूर्य के निकट इस तारे के आने से सूर्य का कुछ भाग ज्वारीय उद्भेदन के कारण फिलामेंट के रूप में खिंच गया तथा बाद में टूटकर सूर्य का चक्कर लगाने लगा।
यही फिलामेंट सौरमंडल के विभिन्न ग्रहों की उत्पत्ति का कारण बना, जिनमें पृथ्वी भी शामिल है।
यह परिकल्पना ग्रहों और उपग्रहों के क्रम, आकार व संरचना की भी व्याख्या करती है।
C. रसेल की द्वैतारक परिकल्पना (Binary Star Hypothesis)
यह सिद्धांत जीन्स व जेफरिज की परिकल्पना में ही एक प्रकार से संशोधन है।
यह सिद्धांत सूर्य और ग्रहों की दूरी तथा ग्रहों के वर्तमान कोणीय संवेग (Angular Momentum) की व्याख्या करने में भी समर्थ है।
D. ऑटो श्मिड की अंतरतारक धूल परिकल्पना (Inter-Steller Dust Theory)
रूसी वैज्ञानिक ऑटो श्मिड द्वारा 1943 ई. में दी गई इस परिकल्पना में ग्रहों की उत्पत्ति गैस व धूलकणों से मानी गई है।
उनके अनुसार जब सूर्य आकाशगंगा के करीब से गुजर रहा था तो उसने अपनी आकर्षण शक्ति से कुछ गैस मेघ एवं धूलकणों को अपनी ओर आकर्षित किया, जो सामूहिक रूप से सूर्य की परिक्रमा करने लगे।
इन्हीं धूलकणों के संगठित व घनीभूत होने से पृथ्वी व अन्य ग्रहों का निर्माण हुआ।
यह परिकल्पना सूर्य और ग्रहों के बीच कोणीय संवेग, विभिन्न ग्रहों की संरचना में अंतर, ग्रहों की गति में अंतर, सूर्य व ग्रहों की वर्तमान दूरी आदि सभी की वैज्ञानिक व्याख्या करने में समर्थ है।
परन्तु, यह नहीं बता पाया कि गैस व धूल कणों जैसे छोटे अणुओं को सूर्य ने कैसे आकर्षित किया।
E. फ्रेड होयल व लिटिलटन की अभिनव तारा परिकल्पना
अपनी पुस्तक ‘Nature of the Universe’ में 1939 ई. में उन्होंने नाभिकीय भौतिकी से सम्बंधित सिद्धांत देते हुए जीन्स की परिकल्पना में संशोधन किया तथा बताया कि ग्रहों की उत्पत्ति में दो नहीं बल्कि तीन तारों की भूमिका रही है।
इस सिद्धांत के अनुसार ग्रहों का निर्माण सूर्य से न होकर उसके साथी तारे के विस्फोट से हुआ।
इनका सिद्धांत ग्रहों की आपसी दूरी, सूर्य से उनकी दूरी, ग्रहों में कोणीय संवेग की अधिकता एवं ग्रहों का सूर्य की तुलना में अधिक घनत्व की व्याख्या करने में सर्वाधिक समर्थ है।
किन्तु, इस परिकल्पना से ग्रहों व उपग्रहों के आविर्भाव का संतोषजनक हल नहीं निकल पाया।
.
Read More Articles of Geography
You Can Follow on Youtube – Score Better
Join Us on Telegram For More Update
.